Wednesday, April 25, 2012

ऐसे मैं मन बहलाता हूँ - हरिवंश राय 'बच्चन'

Aise Main Man Bahlata Hoon - Harivansh Rai 'Bachchan'
सोचा करता बैठ अकेले,
गत जीवन के सुख-दुख झेले,
दंशनकारी सुधियों से मैं उर के छाले सहलाता हूँ!
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!

नहीं खोजने जाता मरहम,
होकर अपने प्रति अति निर्मम,
उर के घावों को आँसू के खारे जल से नहलाता हूँ!
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!

आह निकल मुख से जाती है,
मानव की ही तो छाती है,
लाज नहीं मुझको देवों में यदि मैं दुर्बल कहलाता हूँ!
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!

वीर तुम बढ़े चलो (Veer Tum Badhe Chalo) - द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी (Dwarika Prasad Maheshwari)

Veer Tum Badhe Chalo - Dwarika Prasad Maheshwari In hindi


वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो !

हाथ में ध्वजा रहे बाल दल सजा रहे
ध्वज कभी झुके नहीं दल कभी रुके नहीं
वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो !

सामने पहाड़ हो सिंह की दहाड़ हो
तुम निडर डरो नहीं तुम निडर डटो वहीं
वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो !

प्रात हो कि रात हो संग हो न साथ हो
सूर्य से बढ़े चलो चन्द्र से बढ़े चलो
वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो !

एक ध्वज लिये हुए एक प्रण किये हुए
मातृ भूमि के लिये पितृ भूमि के लिये
वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो !

अन्न भूमि में भरा वारि भूमि में भरा
यत्न कर निकाल लो रत्न भर निकाल लो
वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो !


Thursday, April 19, 2012

Lost faith



In today's time it is very hard to find someone whom you can trust blindly.


संगीत सुनकर ज्ञान नहीं मिलता, 
मंदिर जा कर भगवान नहीं मिलता, 

पत्थर तो इसलिए पूजते हैं लोग, 
क्योंकि विश्वास के लायक इंसान नहीं मिलता!


In above Para writer wants to say that you can't become genius just by listening to music, and by visiting temple you cant have a meeting with God. People worship the Idol because we cant find someone to believe.


I have found this very fascinating shayari on facebook. 

Sunday, April 15, 2012

था तुम्हें मैंने रुलाया! - Harivansh Rai Bachchan

हा, तुम्हारी मृदुल इच्छा!
हाय, मेरी कटु अनिच्छा!
था बहुत माँगा ना तुमने किन्तु वह भी दे ना पाया!
था तुम्हें मैंने रुलाया!


स्नेह का वह कण तरल था,
मधु न था, न सुधा-गरल था,
एक क्षण को भी, सरलते, क्यों समझ तुमको न पाया!
था तुम्हें मैंने रुलाया!

बूँद कल की आज सागर,
सोचता हूँ बैठ तट पर -
क्यों अभी तक डूब इसमें कर न अपना अंत पाया!
था तुम्हें मैंने रुलाया!

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Posted from some online source

Koi tumse pooche kaun hoon main

Koi tumse pooche kaun hoon main,
Tum keh dena koi khaas nahi.


Ek dost hai kaccha pakka sa,
Ek jhooth hai aadha saccha sa.
Zazbaat ko dhake ek parda bas,
Ek bahana hai accha sa.


Jeevan ka ek aisa saathi hai,
Jo door ho ke pass nahin.
Koi tumse pooche kaun hoon main,
Tum keh dena koi khaas nahi.


Hawa ka ek suhana jhonkha hai,
Kabhi najuk toh kabhi tufaano sa.
Sakal dekh kar jo nazrein jhuka le,
Kabhi apna toh kabhi begaano sa.


Zindgi ka ek aisa humsafar,
Jo samandar hai, par dil ko pyaas nahi.
Koi tumse pooche kaun hoon main,
Tum keh dena koi khaas nahi.


Ek saathi jo ankahi kuch baatein keh jaata hai,
Yaadon me jiska ek dhundhla chehra reh jaata hai.
Yuh toh uske na hone ka kuch gam nahin,
Par kabhi-kabhi aankho se ansu ban ke beh jaata hai.


Yuh rehta toh mere tassavur me hai,
Par in aankho ko uski talaash nahi.
Koi tumse pooche kaun hoon main,
Tum keh dena koi khaas nahin...

नर हो न निराश करो मन को - Maithili Sharan Gupt


A great source of inspiration.. It feels good whenever i read this poem. 

नर हो न निराश करो मन को
कुछ काम करो कुछ काम करो
जग में रहके निज नाम करो
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो
कुछ तो उपयुक्त करो तन को
नर हो न निराश करो मन को ।

संभलो कि सुयोग न जाए चला
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला
समझो जग को न निरा सपना
पथ आप प्रशस्त करो अपना
अखिलेश्वर है अवलम्बन को
नर हो न निराश करो मन को ।

जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहाँ
फिर जा सकता वह सत्त्व कहाँ
तुम स्वत्त्व सुधा रस पान करो
उठके अमरत्व विधान करो
दवरूप रहो भव कानन को
नर हो न निराश करो मन को ।

निज गौरव का नित ज्ञान रहे
हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे
सब जाय अभी पर मान रहे
मरणोत्तर गुंजित गान रहे
कुछ हो न तजो निज साधन को
नर हो न निराश करो मन को ।

Shakti Aur Kshma - Ramdhari Singh Dinkar


Very nice and inspiration poem written by great hindi poet Ramdhari Singh 'Dinkar'


Kshama, daya, tap, tyaag, manobal
Sabka liya sahara
Par nar vyagh Suyodhan tumse
Kaho kahan kab haara?


Kshamasheel ho rrpu-saksham
Tum huye vineet jitna hi
Dusht Kauravon ne tumko
Kaayar samjha utna hi


Atyachar sahan karne ka
Kufal yahi hota hai
Paurush ka aatank manuj
Komal hokar khota hai


Kshama shobhti us bhujang ko
Jiske paas garal hai
Uska kya jo dantheen
Vishrahit vineet saral hai


Teen divas tak panth mangte
Raghupati sindhu kinare
Baithey padhtey rahey chhand
Anunay ke pyaare pyaare


Uttar mein jab ek naad bhi
Utha nahi saagar se
Uthi adheer dhadhak paurush ki
Aag raam ke shar se


Sindhu deh dhar trahi-trahi
Karta aa gira sharan mein
Charan pooj daasta grrhan ki
Bandha moodh bandhan mein


Sach poochho to shar mein hi
Basti hai deepti vinay ki
Sandhivachan sampoojya usika
Jisme shakti vijay ki


Sahansheelta, kshama, daya ko
Tabhi poojta jag hai
Bal ka darp chamakta uskey
Peechhey jab jagmag hai!!




-Ramdhari Singh 'Dinkar'

Friday, April 6, 2012

इश्क अब इन्किलाब तक पंहुचे - Madhup Mohta


इश्क अब इन्किलाब तक पंहुचे
चल ये शब भी शबाब तक पहुंचे

ज़िक्र तेरा कुछ इस तरह से मिला
खुद ब खुद लब शराब तक पहुंचे

चल ये माना तू तसव्वुर है मेरा
तेरी झलक ही ख्वाब तक पहुंचे

तितलियाँ, बिजलियाँ, उड़न परियाँ
मिलीं कई तो इन्तिखाब तक पंहुचे

तू मेरे दिल को तार तार तो कर
तो ये किस्सा किताब तक पहुंचे

- मधुप मोहता