This is the theme song of Potli baba ki
Collection of interesting things i have ever come across. Whether be it Poem, Poetry or some other interesting stuff.
Saturday, August 15, 2015
"Vijay vishwa tiranga pyara, jhanda uncha rahe hamara" was written by Shyamlal Parashad
'Vijay vishwa tiranga pyara, jhanda uncha rahe hamara...' was written by Shyamlal Parashad, who hailed from Kanpur. Parashad wrote this song in 1924.
Lyrics:
Vijayi vishwa tiranga pyaara
Jhanda uncha rahei(n) humara
Sadaa shakti barsaane waala,
Prem sudha sarsaane waala,
Veero ko harshaane waala,
Maatru bhoomi ka tan-man saara,
Jhanda uncha rahei(n) humara.
Swatantra ke bheeshan run mein,
Lakhkar josh badhein
kshan-kshan mein,
Kaape shatru dekh kar man mein,
Mit jaye bhay sankat saara
Jhanda uncha rahei(n) humaara.
Is zande ke neeche nirbhay,
Rahei(n) swaadheen
hum avichal nishchay.
Bolo Bhaarat maata ki jay.
Swatantrata ho dhyey humara
Jhanda uncha rahei(n) humaara.
Aao, pyaare veero! Aao;
Desh- dharm par bali-bali jao
Ek saath sab mil kar gaao,
“Pyaara Bhaarat desh humaara,
Jhanda uncha rahei(n) humaara.
Iski shaan na jaane paaye,
Chaahei(n) jaan bhale hi jaye,
Vishwa vijay karke dikhlaaye,
Tab hove praan poorna humaara
Jhanda uncha rahei(n) humaara,
Vijayi vishwa tiranga pyaara.”
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा।
सदा शक्ति बरसाने वाला, प्रेम सुधा सरसाने वाला,
वीरों को हरषाने वाला, मातृभूमि का तन-मन सारा।। झंडा...।
स्वतंत्रता के भीषण रण में, लखकर बढ़े जोश क्षण-क्षण में,
कांपे शत्रु देखकर मन में, मिट जाए भय संकट सारा।। झंडा...।
इस झंडे के नीचे निर्भय, लें स्वराज्य यह अविचल निश्चय|
बोलें भारत माता की जय, स्वतंत्रता हो ध्येय हमारा।। झंडा...।
आओ! प्यारे वीरो, आओ, देश-धर्म पर बलि-बलि जाओ|
एक साथ सब मिलकर गाओ, प्यारा भारत देश हमारा।। झंडा...।
इसकी शान न जाने पाए, चाहे जान भले ही जाए,
विश्व-विजय करके दिखलाएं, तब होवे प्रण पूर्ण हमारा।। झंडा...।
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा।
Lyrics:
Vijayi vishwa tiranga pyaara
Jhanda uncha rahei(n) humara
Sadaa shakti barsaane waala,
Prem sudha sarsaane waala,
Veero ko harshaane waala,
Maatru bhoomi ka tan-man saara,
Jhanda uncha rahei(n) humara.
Swatantra ke bheeshan run mein,
Lakhkar josh badhein
kshan-kshan mein,
Kaape shatru dekh kar man mein,
Mit jaye bhay sankat saara
Jhanda uncha rahei(n) humaara.
Is zande ke neeche nirbhay,
Rahei(n) swaadheen
hum avichal nishchay.
Bolo Bhaarat maata ki jay.
Swatantrata ho dhyey humara
Jhanda uncha rahei(n) humaara.
Aao, pyaare veero! Aao;
Desh- dharm par bali-bali jao
Ek saath sab mil kar gaao,
“Pyaara Bhaarat desh humaara,
Jhanda uncha rahei(n) humaara.
Iski shaan na jaane paaye,
Chaahei(n) jaan bhale hi jaye,
Vishwa vijay karke dikhlaaye,
Tab hove praan poorna humaara
Jhanda uncha rahei(n) humaara,
Vijayi vishwa tiranga pyaara.”
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा।
सदा शक्ति बरसाने वाला, प्रेम सुधा सरसाने वाला,
वीरों को हरषाने वाला, मातृभूमि का तन-मन सारा।। झंडा...।
स्वतंत्रता के भीषण रण में, लखकर बढ़े जोश क्षण-क्षण में,
कांपे शत्रु देखकर मन में, मिट जाए भय संकट सारा।। झंडा...।
इस झंडे के नीचे निर्भय, लें स्वराज्य यह अविचल निश्चय|
बोलें भारत माता की जय, स्वतंत्रता हो ध्येय हमारा।। झंडा...।
आओ! प्यारे वीरो, आओ, देश-धर्म पर बलि-बलि जाओ|
एक साथ सब मिलकर गाओ, प्यारा भारत देश हमारा।। झंडा...।
इसकी शान न जाने पाए, चाहे जान भले ही जाए,
विश्व-विजय करके दिखलाएं, तब होवे प्रण पूर्ण हमारा।। झंडा...।
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा।
Sunday, July 5, 2015
Puzzles
Puzzles:
1. Can you name four days which start with the letter "T"?
2. If you are in a dark room with a candle, a wood stove and a gas lamp.
You only have one match, so what do you light first?
Answer:
1.Tuesday, Thursday, Today and Tomorrow.
1. Can you name four days which start with the letter "T"?
2. If you are in a dark room with a candle, a wood stove and a gas lamp.
You only have one match, so what do you light first?
Answer:
1.Tuesday, Thursday, Today and Tomorrow.
2. The Match
Hum Panchi Unmukt Gagan ke - Shivmangal Singh Suman
Hum Panchi Unmukt Gagan ke - Shivmangal Singh Suman
हम पंछी उन्मुक्त गगन के
पिंजरबद्ध न गा पाएँगे,
कनक-तीलियों से टकराकर
पुलकित पंख टूट जाऍंगे।
हम बहता जल पीनेवाले
मर जाएँगे भूखे-प्यासे,
कहीं भली है कटुक निबोरी
कनक-कटोरी की मैदा से,
स्वर्ण-श्रृंखला के बंधन में
अपनी गति, उड़ान सब भूले,
बस सपनों में देख रहे हैं
तरू की फुनगी पर के झूले।
ऐसे थे अरमान कि उड़ते
नील गगन की सीमा पाने,
लाल किरण-सी चोंचखोल
चुगते तारक-अनार के दाने।
होती सीमाहीन क्षितिज से
इन पंखों की होड़ा-होड़ी,
या तो क्षितिज मिलन बन जाता
या तनती साँसों की डोरी।
नीड़ न दो, चाहे टहनी का
आश्रय छिन्न-भिन्न कर डालो,
लेकिन पंख दिए हैं, तो
आकुल उड़ान में विघ्न न डालो।
हम पंछी उन्मुक्त गगन के
पिंजरबद्ध न गा पाएँगे,
कनक-तीलियों से टकराकर
पुलकित पंख टूट जाऍंगे।
हम बहता जल पीनेवाले
मर जाएँगे भूखे-प्यासे,
कहीं भली है कटुक निबोरी
कनक-कटोरी की मैदा से,
स्वर्ण-श्रृंखला के बंधन में
अपनी गति, उड़ान सब भूले,
बस सपनों में देख रहे हैं
तरू की फुनगी पर के झूले।
ऐसे थे अरमान कि उड़ते
नील गगन की सीमा पाने,
लाल किरण-सी चोंचखोल
चुगते तारक-अनार के दाने।
होती सीमाहीन क्षितिज से
इन पंखों की होड़ा-होड़ी,
या तो क्षितिज मिलन बन जाता
या तनती साँसों की डोरी।
नीड़ न दो, चाहे टहनी का
आश्रय छिन्न-भिन्न कर डालो,
लेकिन पंख दिए हैं, तो
आकुल उड़ान में विघ्न न डालो।
Mitti ki Mahima - Shivmangal Singh Suman
Mitti ki Mahima - Shivmangal Singh Suman
निर्मम कुम्हार की थापी से
कितने रूपों में कुटी-पिटी,
हर बार बिखेरी गई, किंतु
मिट्टी फिर भी तो नहीं मिटी!
आशा में निश्छल पल जाए, छलना में पड़ कर छल जाए
सूरज दमके तो तप जाए, रजनी ठुमकी तो ढल जाए,
यों तो बच्चों की गुडिया सी, भोली मिट्टी की हस्ती क्या
आँधी आये तो उड़ जाए, पानी बरसे तो गल जाए!
फसलें उगतीं, फसलें कटती लेकिन धरती चिर उर्वर है
सौ बार बने सौ बर मिटे लेकिन धरती अविनश्वर है।
मिट्टी गल जाती पर उसका विश्वास अमर हो जाता है।
विरचे शिव, विष्णु विरंचि विपुल
अगणित ब्रम्हाण्ड हिलाए हैं।
पलने में प्रलय झुलाया है
गोदी में कल्प खिलाए हैं!
रो दे तो पतझर आ जाए, हँस दे तो मधुरितु छा जाए
झूमे तो नंदन झूम उठे, थिरके तो तांड़व शरमाए
यों मदिरालय के प्याले सी मिट्टी की मोहक मस्ती क्या
अधरों को छू कर सकुचाए, ठोकर लग जाये छहराए!
उनचास मेघ, उनचास पवन, अंबर अवनि कर देते सम
वर्षा थमती, आँधी रुकती, मिट्टी हँसती रहती हरदम,
कोयल उड़ जाती पर उसका निश्वास अमर हो जाता है
मिट्टी गल जाती पर उसका विश्वास अमर हो जाता है!
मिट्टी की महिमा मिटने में
मिट मिट हर बार सँवरती है
मिट्टी मिट्टी पर मिटती है
मिट्टी मिट्टी को रचती है
मिट्टी में स्वर है, संयम है, होनी अनहोनी कह जाए
हँसकर हालाहल पी जाए, छाती पर सब कुछ सह जाए,
यों तो ताशों के महलों सी मिट्टी की वैभव बस्ती क्या
भूकम्प उठे तो ढह जाए, बूड़ा आ जाए, बह जाए!
लेकिन मानव का फूल खिला, अब से आ कर वाणी का वर
विधि का विधान लुट गया स्वर्ग अपवर्ग हो गए निछावर,
कवि मिट जाता लेकिन उसका उच्छ्वास अमर हो जाता है
मिट्टी गल जाती पर उसका विश्वास अमर हो जाता है।
निर्मम कुम्हार की थापी से
कितने रूपों में कुटी-पिटी,
हर बार बिखेरी गई, किंतु
मिट्टी फिर भी तो नहीं मिटी!
आशा में निश्छल पल जाए, छलना में पड़ कर छल जाए
सूरज दमके तो तप जाए, रजनी ठुमकी तो ढल जाए,
यों तो बच्चों की गुडिया सी, भोली मिट्टी की हस्ती क्या
आँधी आये तो उड़ जाए, पानी बरसे तो गल जाए!
फसलें उगतीं, फसलें कटती लेकिन धरती चिर उर्वर है
सौ बार बने सौ बर मिटे लेकिन धरती अविनश्वर है।
मिट्टी गल जाती पर उसका विश्वास अमर हो जाता है।
विरचे शिव, विष्णु विरंचि विपुल
अगणित ब्रम्हाण्ड हिलाए हैं।
पलने में प्रलय झुलाया है
गोदी में कल्प खिलाए हैं!
रो दे तो पतझर आ जाए, हँस दे तो मधुरितु छा जाए
झूमे तो नंदन झूम उठे, थिरके तो तांड़व शरमाए
यों मदिरालय के प्याले सी मिट्टी की मोहक मस्ती क्या
अधरों को छू कर सकुचाए, ठोकर लग जाये छहराए!
उनचास मेघ, उनचास पवन, अंबर अवनि कर देते सम
वर्षा थमती, आँधी रुकती, मिट्टी हँसती रहती हरदम,
कोयल उड़ जाती पर उसका निश्वास अमर हो जाता है
मिट्टी गल जाती पर उसका विश्वास अमर हो जाता है!
मिट्टी की महिमा मिटने में
मिट मिट हर बार सँवरती है
मिट्टी मिट्टी पर मिटती है
मिट्टी मिट्टी को रचती है
मिट्टी में स्वर है, संयम है, होनी अनहोनी कह जाए
हँसकर हालाहल पी जाए, छाती पर सब कुछ सह जाए,
यों तो ताशों के महलों सी मिट्टी की वैभव बस्ती क्या
भूकम्प उठे तो ढह जाए, बूड़ा आ जाए, बह जाए!
लेकिन मानव का फूल खिला, अब से आ कर वाणी का वर
विधि का विधान लुट गया स्वर्ग अपवर्ग हो गए निछावर,
कवि मिट जाता लेकिन उसका उच्छ्वास अमर हो जाता है
मिट्टी गल जाती पर उसका विश्वास अमर हो जाता है।
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