Friday, September 2, 2011

Kuch Door Hamare Sath Chalo Hum Dilki Kahani Keh Denge

Kuch Door Hamare Sath Chalo Hum Dilki Kahani Keh Denge,
Samjhe Na Jise Tum Aankhon se Wo Baat Zubani Keh Denge,

Phoolon Ki Tarah Jab Hothon Pe Ek Shokh Tabassum Bikhrega,
Dheere Se Tumhare Kaano Mein Ek Baat Purani Keh Denge,

Izhaar-E-Wafa Tum Kya Jaano Iqraar-E-Wafa Tum Kya Jano,
Hum Zikr Karenge Gairon Ka Aur Apni Kahani Keh Denge,

Mausam To Bada Hi Zaalim Hai Toofan Uthata Rehta Hai,
Kuch Log Magar Is Halchal Ko Badmast Jawani Keh Denge...

Thursday, September 1, 2011

Gandhi’s top 10

I came across a blog that listed Gandhi’s Top 10 Fundamentals for Changing the World.
1. Change
“You must be the change you want to see in the world.”
“As human beings, our greatness lies not so much in being able to remake the world – that is the myth of the atomic age – as in being able to remake ourselves.”
2. Control.
“Nobody can hurt me without my permission.”

3. Forgiveness

“The weak can never forgive. Forgiveness is the attribute of the strong.”
“An eye for eye only ends up making the whole world blind.”

4. Action.

“An ounce of practice is worth more than tons of preaching.”

5. The present moment.

“I do not want to foresee the future. I am concerned with taking care of the present. God has given me no control over the moment following.”

6. Everyone is human.

“I claim to be a simple individual liable to err like any other fellow mortal. I own, however, that I have humility enough to confess my errors and to retrace my steps.”
“It is unwise to be too sure of one’s own wisdom. It is healthy to be reminded that the strongest might weaken and the wisest might err.”

7. Persist.

“First they ignore you, then they laugh at you, then they fight you, then you win.”

8. Goodness.

“I look only to the good qualities of men. Not being faultless myself, I won’t presume to probe into the faults of others.”
“I suppose leadership at one time meant muscles; but today it means getting along with people.”
9. Truth
“Happiness is when what you think, what you say, and what you do are in harmony.”
“Always aim at complete harmony of thought and word and deed. Always aim at purifying your thoughts and everything will be well.”
10. Development.
“Constant development is the law of life, and a man who always tries to maintain his dogmas in order to appear consistent drives himself into a false position.”

Saturday, July 2, 2011

जो बीत गई सो बात गई


जो बीत गई सो बात गई


जीवन में एक सितारा था
माना वह बेहद प्यारा था
वह डूब गया तो डूब गया
अम्बर के आनन को देखो
कितने इसके तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे
जो छूट गए फिर कहाँ मिले
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अम्बर शोक मनाता है
जो बीत गई सो बात गई

जीवन में वह था एक कुसुम
थे उसपर नित्य निछावर तुम
वह सूख गया तो सूख गया
मधुवन की छाती को देखो
सूखी कितनी इसकी कलियाँ
मुर्झाई कितनी वल्लरियाँ
जो मुर्झाई फिर कहाँ खिली
पर बोलो सूखे फूलों पर
कब मधुवन शोर मचाता है
जो बीत गई सो बात गई

जीवन में मधु का प्याला था
तुमने तन मन दे डाला था
वह टूट गया तो टूट गया
मदिरालय का आँगन देखो
कितने प्याले हिल जाते हैं
गिर मिट्टी में मिल जाते हैं
जो गिरते हैं कब उठतें हैं
पर बोलो टूटे प्यालों पर
कब मदिरालय पछताता है
जो बीत गई सो बात गई

मृदु मिटटी के हैं बने हुए
मधु घट फूटा ही करते हैं
लघु जीवन लेकर आए हैं
प्याले टूटा ही करते हैं
फिर भी मदिरालय के अन्दर
मधु के घट हैं मधु प्याले हैं
जो मादकता के मारे हैं
वे मधु लूटा ही करते हैं
वह कच्चा पीने वाला है
जिसकी ममता घट प्यालों पर
जो सच्चे मधु से जला हुआ
कब रोता है चिल्लाता है
जो बीत गई सो बात गई।।



-हरिवंशराय बच्चन

Monday, January 24, 2011

आग बहुत-सी बाकी है - Abhinav Shulka

भारत क्यों तेरी साँसों के, स्वर आहत से लगते हैं,
अभी जियाले परवानों में, आग बहुत-सी बाकी है।
क्यों तेरी आँखों में पानी, आकर ठहरा-ठहरा है,
जब तेरी नदियों की लहरें, डोल-डोल मदमाती हैं।
जो गुज़रा है वह तो कल था, अब तो आज की बातें हैं,
और लड़े जो बेटे तेरे, राज काज की बातें हैं,
चक्रवात पर, भूकंपों पर, कभी किसी का ज़ोर नहीं,
और चली सीमा पर गोली, सभ्य समाज की बातें हैं।

कल फिर तू क्यों, पेट बाँधकर सोया था, मैं सुनता हूँ,
जब तेरे खेतों की बाली, लहर-लहर इतराती है।

अगर बात करनी है उनको, काश्मीर पर करने दो,
अजय अहूजा, अधिकारी, नय्यर, जब्बर को मरने दो,
वो समझौता ए लाहौरी, याद नहीं कर पाएँगे,
भूल कारगिल की गद्दारी, नई मित्रता गढ़ने दो,

ऐसी अटल अवस्था में भी, कल क्यों पल-पल टलता है,
जब मीठी परवेज़ी गोली, गीत सुना बहलाती है।

चलो ये माना थोड़ा गम है, पर किसको न होता है,
जब रातें जगने लगती हैं, तभी सवेरा सोता है,
जो अधिकारों पर बैठे हैं, वह उनका अधिकार ही है,
फसल काटता है कोई, और कोई उसको बोता है।

क्यों तू जीवन जटिल चक्र की, इस उलझन में फँसता है,
जब तेरी गोदी में बिजली कौंध-कौंध मुस्काती है।

- अभिनव शुक्ला

अरुण यह मधुमय देश

अरुण यह मधुमय देश हमारा।
जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को
मिलता एक सहारा।

सरस तामरस गर्भ विभा पर
नाच रही तरुशिखा मनोहर।
छिटका जीवन हरियाली पर
मंगल कुंकुम सारा।।

लघु सुरधनु से पंख पसारे
शीतल मलय समीर सहारे।
उड़ते खग जिस ओर मुँह किए
समझ नीड़ निज प्यारा।।

बरसाती आँखों के बादल
बनते जहाँ भरे करुणा जल।
लहरें टकरातीं अनंत की
पाकर जहाँ किनारा।।

हेम कुंभ ले उषा सवेरे
भरती ढुलकाती सुख मेरे।
मदिर ऊँघते रहते जब
जग कर रजनी भर तारा।।

- जयशंकर प्रसाद