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Tuesday, July 28, 2020

हम दुनिया से जब तंग आया करते हैं - तैमूर हसन

हम दुनिया से जब तंग आया करते हैं

अपने साथ इक शाम मनाया करते हैं

सूरज के उस जानिब बसने वाले लोग

अक्सर हम को पास बुलाया करते हैं

यूँही ख़ुद से रूठा करते हैं पहले

देर तलक फिर ख़ुद को मनाया करते हैं

चुप रहते हैं उस के सामने जा कर हम

यूँ उस को चख याद दिलाया करते हैं

नींदों के वीरान जज़ीरे पर हर शब

ख़्वाबों का इक शहर बसाया करते हैं

इन ख़्वाबों की क़ीमत हम से पूछ कि हम

इन के सहारे उम्र बिताया करते हैं

अब तो कोई भी दूर नहीं तो फिर 'तैमूर'

हम ख़त किस के नाम लिखाया करते हैं



Hum Duniya se jab tang aaya karte hain - Taimur Hassan

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की नज़्म - 'कुछ इश्क़ किया कुछ काम किया'


कुछ इश्क़ किया कुछ काम किया

वो लोग बहुत ख़ुश-क़िस्मत थे

जो इश्क़ को काम समझते थे

या काम से आशिक़ी करते थे

हम जीते-जी मसरूफ़ रहे

कुछ इश्क़ किया कुछ काम किया

काम इश्क़ के आड़े आता रहा

और इश्क़ से काम उलझता रहा

फिर आख़िर तंग आ कर हम ने

दोनों को अधूरा छोड़ दिया


Woh log bahut khush kishmat the,
Jo Ishq ko kaam samajhte the -- Faiz Ahmed faiz

Tuesday, December 23, 2014

Mere To Giridhar Gopal - Meerabai



मेरे तो गिरिधर गोपाल दूसरो न कोई।
जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई।
तात मात भ्रात बंधु आपनो न कोई॥।
छाँड़ि दी कुल की कानि कहा करिहै कोई।
संतन ढिंग बैठि-बैठि लोक लाज खोई॥
चुनरी के किये टूक ओढ़ लीन्ही लोई।
मोती मूँगे उतार बनमाला पोई॥
अँसुवन जल सींचि सींचि प्रेम बेलि बोई।
अब तो बेल फैल गई आणँद फल होई॥
दूध की मथनियाँ बड़े प्रेम से बिलोई।
माखन जब काढ़ि लियो छाछा पिये कोई॥
भगत देख राजी हुई जगत देखि रोई।
दासी "मीरा" लाल गिरिधर तारो अब मोही॥

- मीराबाई

Wednesday, June 25, 2014

Tum bin kitne aaj akele, kya hum tumko batlayein - kumar vishwas

Kumar vishwas is a very talented hindi poet. I am writing below the lyrics of his poem which i like very much. "tum bin kitne aaj akele, kya hum tumko batlayein"

तुम बिन कितने अज अकेले,
क्या हम तुमको बतलायें?
अम्बर में है चाँद अकेला,
तारे उसके साथ तो हैं,
तारे भी छुप जाएँ अगर तो,
साथ अँधेरी रात तो हैं,
पर हम तो दिन रात अकेले
क्या हम तुमको बतलायें?

जिन राहों पर हम-तुम संग थे,
वो राहें ये पूछ रही हैं
कितनी तन्हा बीत चुकी हैं,
कितनी तन्हा और रही है
दिल दो हैं,ज़ज्बात अकेले,
क्या हम तुमको बतलायें..?

वो लम्हें क्या याद हैं तुमको
जिनमें तुम-हम हमजोली थे,
महका-महका घर आँगन था
रात दिवाली,दिन होली थे,
अब हैं,सब त्यौहार अकेले,
क्या हम तुमको बतलायें?

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Tum bin kitne aaj akele
kya hum tumko batlaayein
ambar mein hai chaand akela
taare uske saath to hain 
taare bhi chhup jaayein agar to
sath andheri raat to hai
par ham to din raat akele
kya hum tumko batlaayein

Jin raahon par hum tum sang the 
vo raahein ye pooch rahi hain
kitni tanha beet chuki hain 
kitni tanhaa aur rahi hain 
dil do hain, jajbaat akele
kya hum tumko batlaayein

Vo lamhe kya yaad hain tumko
jinme hum tum hamjoli the
mahka mahka ghar aangan tha
raat diwali din holi the
ab hain sab tyonhaar akele
kya hum tumko batlayein

Wednesday, December 4, 2013

पंथ होने दो अपरिचित Mahadevi Verma



पंथ होने दो अपरिचित ( Panth hone do Aparichit )

पंथ होने दो अपरिचित
प्राण रहने दो अकेला!

और होंगे चरण हारे,                
अन्य हैं जो लौटते दे शूल को संकल्प सारे;
दुखव्रती निर्माण-उन्मद
यह अमरता नापते पद;
बाँध देंगे अंक-संसृति से तिमिर में स्वर्ण बेला!

दूसरी होगी कहानी                
शून्य में जिसके मिटे स्वर, धूलि में खोई निशानी;
आज जिसपर प्यार विस्मित,
मैं लगाती चल रही नित,
मोतियों की हाट औ, चिनगारियों का एक मेला!

हास का मधु-दूत भेजो,                
रोष की भ्रूभंगिमा पतझार को चाहे सहेजो;
ले मिलेगा उर अचंचल
वेदना-जल स्वप्न-शतदल,
जान लो, वह मिलन-एकाकी विरह में है दुकेला!

- महादेवी वर्मा

Monday, November 25, 2013

Avatar - Ved Vyas

कवि - वेद व्यास

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानं अधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम ॥

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम ।
धर्म संस्थापनार्थाय सम्भवानि युगे युगे ॥
____________________________________

Yada yada hi dharmasya glanir bhavati bharata|
Abhyutthanam adharmasya tadatmanam srjamyaham||

Paritranaya saadhunam vinashaya cha dushkrrtam |
Dharm sansthapnarthaya sambhavani yuge yuge ||
_____________________________

Hindi Translation

Jab Jab hogi dharam ki haani, badhenge asur adharm abhimani,


Tab tab prabhu manushya ka sharir leke saare kasht khatam karenge aur saari peeda har lenge.

Wednesday, July 18, 2012

Raat Yo Kahne Laga Mujse Gagan ka Chaand - By Ramdhari SIngh Dinkar



रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद,
आदमी भी क्या अनोखा जीव है ।
उलझनें अपनी बनाकर आप ही फँसता,
और फिर बेचैन हो जगता, न सोता है ।
जानता है तू कि मैं कितना पुराना हूँ?
मैं चुका हूँ देख मनु को जनमते-मरते ।
और लाखों बार तुझ-से पागलों को भी
चाँदनी में बैठ स्वप्नों पर सही करते।
आदमी का स्वप्न? है वह बुलबुला जल का
आज उठता और कल फिर फूट जाता है ।
किन्तु, फिर भी धन्य ठहरा आदमी ही तो
बुलबुलों से खेलता, कविता बनाता है ।
मैं न बोला किन्तु मेरी रागिनी बोली,
देख फिर से चाँद! मुझको जानता है तू?
स्वप्न मेरे बुलबुले हैं? है यही पानी,
आग को भी क्या नहीं पहचानता है तू?
मैं न वह जो स्वप्न पर केवल सही करते,
आग में उसको गला लोहा बनाता हूँ ।
और उस पर नींव रखता हूँ नये घर की,
इस तरह दीवार फौलादी उठाता हूँ ।
मनु नहीं, मनु-पुत्र है यह सामने, जिसकी
कल्पना की जीभ में भी धार होती है ।
वाण ही होते विचारों के नहीं केवल,
स्वप्न के भी हाथ में तलवार होती है।
स्वर्ग के सम्राट को जाकर खबर कर दे
रोज ही आकाश चढ़ते जा रहे हैं वे ।
रोकिये, जैसे बने इन स्वप्नवालों को,
स्वर्ग की ही ओर बढ़ते आ रहे हैं वे।

Saturday, July 14, 2012

The Road Not Taken - Robert Frost


The Road Not Taken


Two roads diverged in a yellow wood,
And sorry I could not travel both
And be one traveler, long I stood
And looked down one as far as I could
To where it bent in the undergrowth;

Then took the other, as just as fair,
And having perhaps the better claim
Because it was grassy and wanted wear,
Though as for that the passing there
Had worn them really about the same,

And both that morning equally lay
In leaves no step had trodden black.
Oh, I marked the first for another day!
Yet knowing how way leads on to way
I doubted if I should ever come back.

I shall be telling this with a sigh
Somewhere ages and ages hence:
Two roads diverged in a wood, and I,
I took the one less traveled by,
And that has made all the difference.

-- Robert Frost

Thursday, May 24, 2012

Aag Jalni Chahiye - Dushyant Kumar

आग जलनी चाहिए
- दुष्यन्त कुमार (Dushyant Kumar)



हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।

Wednesday, April 25, 2012

ऐसे मैं मन बहलाता हूँ - हरिवंश राय 'बच्चन'

Aise Main Man Bahlata Hoon - Harivansh Rai 'Bachchan'
सोचा करता बैठ अकेले,
गत जीवन के सुख-दुख झेले,
दंशनकारी सुधियों से मैं उर के छाले सहलाता हूँ!
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!

नहीं खोजने जाता मरहम,
होकर अपने प्रति अति निर्मम,
उर के घावों को आँसू के खारे जल से नहलाता हूँ!
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!

आह निकल मुख से जाती है,
मानव की ही तो छाती है,
लाज नहीं मुझको देवों में यदि मैं दुर्बल कहलाता हूँ!
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!

वीर तुम बढ़े चलो (Veer Tum Badhe Chalo) - द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी (Dwarika Prasad Maheshwari)

Veer Tum Badhe Chalo - Dwarika Prasad Maheshwari In hindi


वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो !

हाथ में ध्वजा रहे बाल दल सजा रहे
ध्वज कभी झुके नहीं दल कभी रुके नहीं
वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो !

सामने पहाड़ हो सिंह की दहाड़ हो
तुम निडर डरो नहीं तुम निडर डटो वहीं
वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो !

प्रात हो कि रात हो संग हो न साथ हो
सूर्य से बढ़े चलो चन्द्र से बढ़े चलो
वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो !

एक ध्वज लिये हुए एक प्रण किये हुए
मातृ भूमि के लिये पितृ भूमि के लिये
वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो !

अन्न भूमि में भरा वारि भूमि में भरा
यत्न कर निकाल लो रत्न भर निकाल लो
वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो !


Thursday, April 19, 2012

Lost faith



In today's time it is very hard to find someone whom you can trust blindly.


संगीत सुनकर ज्ञान नहीं मिलता, 
मंदिर जा कर भगवान नहीं मिलता, 

पत्थर तो इसलिए पूजते हैं लोग, 
क्योंकि विश्वास के लायक इंसान नहीं मिलता!


In above Para writer wants to say that you can't become genius just by listening to music, and by visiting temple you cant have a meeting with God. People worship the Idol because we cant find someone to believe.


I have found this very fascinating shayari on facebook. 

Sunday, April 15, 2012

था तुम्हें मैंने रुलाया! - Harivansh Rai Bachchan

हा, तुम्हारी मृदुल इच्छा!
हाय, मेरी कटु अनिच्छा!
था बहुत माँगा ना तुमने किन्तु वह भी दे ना पाया!
था तुम्हें मैंने रुलाया!


स्नेह का वह कण तरल था,
मधु न था, न सुधा-गरल था,
एक क्षण को भी, सरलते, क्यों समझ तुमको न पाया!
था तुम्हें मैंने रुलाया!

बूँद कल की आज सागर,
सोचता हूँ बैठ तट पर -
क्यों अभी तक डूब इसमें कर न अपना अंत पाया!
था तुम्हें मैंने रुलाया!

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Posted from some online source

Koi tumse pooche kaun hoon main

Koi tumse pooche kaun hoon main,
Tum keh dena koi khaas nahi.


Ek dost hai kaccha pakka sa,
Ek jhooth hai aadha saccha sa.
Zazbaat ko dhake ek parda bas,
Ek bahana hai accha sa.


Jeevan ka ek aisa saathi hai,
Jo door ho ke pass nahin.
Koi tumse pooche kaun hoon main,
Tum keh dena koi khaas nahi.


Hawa ka ek suhana jhonkha hai,
Kabhi najuk toh kabhi tufaano sa.
Sakal dekh kar jo nazrein jhuka le,
Kabhi apna toh kabhi begaano sa.


Zindgi ka ek aisa humsafar,
Jo samandar hai, par dil ko pyaas nahi.
Koi tumse pooche kaun hoon main,
Tum keh dena koi khaas nahi.


Ek saathi jo ankahi kuch baatein keh jaata hai,
Yaadon me jiska ek dhundhla chehra reh jaata hai.
Yuh toh uske na hone ka kuch gam nahin,
Par kabhi-kabhi aankho se ansu ban ke beh jaata hai.


Yuh rehta toh mere tassavur me hai,
Par in aankho ko uski talaash nahi.
Koi tumse pooche kaun hoon main,
Tum keh dena koi khaas nahin...

Shakti Aur Kshma - Ramdhari Singh Dinkar


Very nice and inspiration poem written by great hindi poet Ramdhari Singh 'Dinkar'


Kshama, daya, tap, tyaag, manobal
Sabka liya sahara
Par nar vyagh Suyodhan tumse
Kaho kahan kab haara?


Kshamasheel ho rrpu-saksham
Tum huye vineet jitna hi
Dusht Kauravon ne tumko
Kaayar samjha utna hi


Atyachar sahan karne ka
Kufal yahi hota hai
Paurush ka aatank manuj
Komal hokar khota hai


Kshama shobhti us bhujang ko
Jiske paas garal hai
Uska kya jo dantheen
Vishrahit vineet saral hai


Teen divas tak panth mangte
Raghupati sindhu kinare
Baithey padhtey rahey chhand
Anunay ke pyaare pyaare


Uttar mein jab ek naad bhi
Utha nahi saagar se
Uthi adheer dhadhak paurush ki
Aag raam ke shar se


Sindhu deh dhar trahi-trahi
Karta aa gira sharan mein
Charan pooj daasta grrhan ki
Bandha moodh bandhan mein


Sach poochho to shar mein hi
Basti hai deepti vinay ki
Sandhivachan sampoojya usika
Jisme shakti vijay ki


Sahansheelta, kshama, daya ko
Tabhi poojta jag hai
Bal ka darp chamakta uskey
Peechhey jab jagmag hai!!




-Ramdhari Singh 'Dinkar'

Friday, April 6, 2012

इश्क अब इन्किलाब तक पंहुचे - Madhup Mohta


इश्क अब इन्किलाब तक पंहुचे
चल ये शब भी शबाब तक पहुंचे

ज़िक्र तेरा कुछ इस तरह से मिला
खुद ब खुद लब शराब तक पहुंचे

चल ये माना तू तसव्वुर है मेरा
तेरी झलक ही ख्वाब तक पहुंचे

तितलियाँ, बिजलियाँ, उड़न परियाँ
मिलीं कई तो इन्तिखाब तक पंहुचे

तू मेरे दिल को तार तार तो कर
तो ये किस्सा किताब तक पहुंचे

- मधुप मोहता

Saturday, July 2, 2011

जो बीत गई सो बात गई


जो बीत गई सो बात गई


जीवन में एक सितारा था
माना वह बेहद प्यारा था
वह डूब गया तो डूब गया
अम्बर के आनन को देखो
कितने इसके तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे
जो छूट गए फिर कहाँ मिले
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अम्बर शोक मनाता है
जो बीत गई सो बात गई

जीवन में वह था एक कुसुम
थे उसपर नित्य निछावर तुम
वह सूख गया तो सूख गया
मधुवन की छाती को देखो
सूखी कितनी इसकी कलियाँ
मुर्झाई कितनी वल्लरियाँ
जो मुर्झाई फिर कहाँ खिली
पर बोलो सूखे फूलों पर
कब मधुवन शोर मचाता है
जो बीत गई सो बात गई

जीवन में मधु का प्याला था
तुमने तन मन दे डाला था
वह टूट गया तो टूट गया
मदिरालय का आँगन देखो
कितने प्याले हिल जाते हैं
गिर मिट्टी में मिल जाते हैं
जो गिरते हैं कब उठतें हैं
पर बोलो टूटे प्यालों पर
कब मदिरालय पछताता है
जो बीत गई सो बात गई

मृदु मिटटी के हैं बने हुए
मधु घट फूटा ही करते हैं
लघु जीवन लेकर आए हैं
प्याले टूटा ही करते हैं
फिर भी मदिरालय के अन्दर
मधु के घट हैं मधु प्याले हैं
जो मादकता के मारे हैं
वे मधु लूटा ही करते हैं
वह कच्चा पीने वाला है
जिसकी ममता घट प्यालों पर
जो सच्चे मधु से जला हुआ
कब रोता है चिल्लाता है
जो बीत गई सो बात गई।।



-हरिवंशराय बच्चन

Monday, January 24, 2011

आग बहुत-सी बाकी है - Abhinav Shulka

भारत क्यों तेरी साँसों के, स्वर आहत से लगते हैं,
अभी जियाले परवानों में, आग बहुत-सी बाकी है।
क्यों तेरी आँखों में पानी, आकर ठहरा-ठहरा है,
जब तेरी नदियों की लहरें, डोल-डोल मदमाती हैं।
जो गुज़रा है वह तो कल था, अब तो आज की बातें हैं,
और लड़े जो बेटे तेरे, राज काज की बातें हैं,
चक्रवात पर, भूकंपों पर, कभी किसी का ज़ोर नहीं,
और चली सीमा पर गोली, सभ्य समाज की बातें हैं।

कल फिर तू क्यों, पेट बाँधकर सोया था, मैं सुनता हूँ,
जब तेरे खेतों की बाली, लहर-लहर इतराती है।

अगर बात करनी है उनको, काश्मीर पर करने दो,
अजय अहूजा, अधिकारी, नय्यर, जब्बर को मरने दो,
वो समझौता ए लाहौरी, याद नहीं कर पाएँगे,
भूल कारगिल की गद्दारी, नई मित्रता गढ़ने दो,

ऐसी अटल अवस्था में भी, कल क्यों पल-पल टलता है,
जब मीठी परवेज़ी गोली, गीत सुना बहलाती है।

चलो ये माना थोड़ा गम है, पर किसको न होता है,
जब रातें जगने लगती हैं, तभी सवेरा सोता है,
जो अधिकारों पर बैठे हैं, वह उनका अधिकार ही है,
फसल काटता है कोई, और कोई उसको बोता है।

क्यों तू जीवन जटिल चक्र की, इस उलझन में फँसता है,
जब तेरी गोदी में बिजली कौंध-कौंध मुस्काती है।

- अभिनव शुक्ला

अरुण यह मधुमय देश

अरुण यह मधुमय देश हमारा।
जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को
मिलता एक सहारा।

सरस तामरस गर्भ विभा पर
नाच रही तरुशिखा मनोहर।
छिटका जीवन हरियाली पर
मंगल कुंकुम सारा।।

लघु सुरधनु से पंख पसारे
शीतल मलय समीर सहारे।
उड़ते खग जिस ओर मुँह किए
समझ नीड़ निज प्यारा।।

बरसाती आँखों के बादल
बनते जहाँ भरे करुणा जल।
लहरें टकरातीं अनंत की
पाकर जहाँ किनारा।।

हेम कुंभ ले उषा सवेरे
भरती ढुलकाती सुख मेरे।
मदिर ऊँघते रहते जब
जग कर रजनी भर तारा।।

- जयशंकर प्रसाद

Thursday, December 9, 2010

Pushp ki abhilasha

पुष्प की अभिलाषा
- माखनलाल चतुर्वेदी (Makhanlal Chaturvedi)
चाह नहीं मैं सुरबाला के
गहनों में गूँथा जाऊँ
चाह नहीं, प्रेमी-माला में
बिंध प्यारी को ललचाऊँ
चाह नहीं, सम्राटों के शव
पर हे हरि, डाला जाऊँ
चाह नहीं, देवों के सिर पर
चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ
मुझे तोड़ लेना वनमाली
उस पथ पर देना तुम फेंक
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पर जावें वीर अनेक ।।