पंथ होने दो
अपरिचित ( Panth hone do Aparichit )
पंथ होने दो
अपरिचित
प्राण रहने दो
अकेला!
और होंगे चरण हारे,
अन्य हैं जो
लौटते दे शूल
को संकल्प सारे;
दुखव्रती निर्माण-उन्मद
यह अमरता नापते पद;
बाँध देंगे अंक-संसृति
से तिमिर में
स्वर्ण बेला!
दूसरी होगी कहानी
शून्य में जिसके
मिटे स्वर, धूलि
में खोई निशानी;
आज जिसपर प्यार विस्मित,
मैं लगाती चल रही
नित,
मोतियों की हाट
औ, चिनगारियों का
एक मेला!
हास का मधु-दूत भेजो,
रोष की भ्रूभंगिमा
पतझार को चाहे
सहेजो;
ले मिलेगा उर अचंचल
वेदना-जल स्वप्न-शतदल,
जान लो, वह
मिलन-एकाकी विरह
में है दुकेला!
- महादेवी वर्मा