Tuesday, July 28, 2020

हम दुनिया से जब तंग आया करते हैं - तैमूर हसन

हम दुनिया से जब तंग आया करते हैं

अपने साथ इक शाम मनाया करते हैं

सूरज के उस जानिब बसने वाले लोग

अक्सर हम को पास बुलाया करते हैं

यूँही ख़ुद से रूठा करते हैं पहले

देर तलक फिर ख़ुद को मनाया करते हैं

चुप रहते हैं उस के सामने जा कर हम

यूँ उस को चख याद दिलाया करते हैं

नींदों के वीरान जज़ीरे पर हर शब

ख़्वाबों का इक शहर बसाया करते हैं

इन ख़्वाबों की क़ीमत हम से पूछ कि हम

इन के सहारे उम्र बिताया करते हैं

अब तो कोई भी दूर नहीं तो फिर 'तैमूर'

हम ख़त किस के नाम लिखाया करते हैं



Hum Duniya se jab tang aaya karte hain - Taimur Hassan

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की नज़्म - 'कुछ इश्क़ किया कुछ काम किया'


कुछ इश्क़ किया कुछ काम किया

वो लोग बहुत ख़ुश-क़िस्मत थे

जो इश्क़ को काम समझते थे

या काम से आशिक़ी करते थे

हम जीते-जी मसरूफ़ रहे

कुछ इश्क़ किया कुछ काम किया

काम इश्क़ के आड़े आता रहा

और इश्क़ से काम उलझता रहा

फिर आख़िर तंग आ कर हम ने

दोनों को अधूरा छोड़ दिया


Woh log bahut khush kishmat the,
Jo Ishq ko kaam samajhte the -- Faiz Ahmed faiz